Sunday, October 18, 2015

सेक्स समस्या के लिए अलसी अचूक औषधि है,जानिए इसके गुण

तमाम रिसर्च और वैज्ञानिक आयुर्वेद और घरेलू नुस्खों के रहस्य को जानने और मानने लगे हैं। अलसी के बीच में चमत्कारों का हाल ही में खुलासा हुआ है कि इनमें 27 प्रकार के कैंसररोधी तत्व खोजे जा चुके हैं।

अलसी में  पाए जानेवाले ये तत्व कैंसररोधी हार्मोन्स को प्रभावी बनाते हैं, विशेषकर पुरूषों में प्रोस्टेट कैंसरव महिलाओं में स्तन कैंसर की रोकधाम में  अलसी का सेवन कारगर है।
दूसरा महत्वपूर्ण खुलासा यह है किअलसी के बीज सेवन से महिलाओं में सेक्स करने की इच्छा तीव्रतर होती है।
यह गनोरिया, नेफ्राइटिस, अस्थमा, सिस्टाइटिस, कैंसर, हृदय रोग, मधुमेह, कब्ज, बवासीर, एक्जिमा के उपचार में उपयोगी है।







कैसे खाएं अलसी के बीज



अलसी को धीमी आंच पर हल्का भून लें। फिर मिक्सर में दरदरा पीस कर किसी एयर टाइट डिब्बे में भरकर रख लें। रोज सुबह-शाम एक-एक चम्मच पावडर पानी के साथ लें। इसे सब्जी या दाल में मिलाकर भी लिया जा सकता है। 

इसे अधिक मात्रा में पीस कर नहीं रखना चाहिए, क्योंकि यह खराब होने लगती है। इसलिए थोड़ा-थोड़ा ही पीस कर रखें। अलसी सेवन के दौरान पानी खूब पीना चाहिए। इसमें फायबर अधिक होता है, जो पानी ज्यादा मांगता है। एक चम्मच अलसी पावडर को 360 मिलीलीटर पानी में तब तक धीमी आंच पर पकाएं जब तक कि यह पानी आधा न रह जाए। थोड़ा ठंडा होने पर शहद या शकर मिलाकर सेवन करें। 





अस्थमा वालों के लिए लाजवाब


सर्दी, खांसी, जुकाम में यह चाय दिन में दो-तीन बार सेवन की जा सकती है। अस्थमा में यह चाय विशेष उपयोगी है। अस्थमा वालों के लिए एक और नुस्खा भी है। एक चम्मच अलसी पावडर आधा गिलास पानी में सुबह भिगो दें। शाम को इसे छानकर पी लें। शाम को भिगोकर सुबह सेवन करें। गिलास कांच या चांदी का होना चाहिए। 




अलसी की असली कहानी


अलसी, तीसी, अतसी, कॉमन फ्लेक्स और वनस्पतिक लिनभयूसिटेटिसिमनम नाम से विख्यात तिलहन अलसी के पौधे बागों और खेतों में खरपतवार के रूप में तो उगते ही हैं, इसकी खेती भी की जाती है। इसका पौधा दो से चार फुट तक ऊंचा, जड़ चार से आठ इंच तक लंबी, पत्ते एक से तीन इंच लंबे, फूल नीले रंग के गोल, आधा से एक इंच व्यास के होते हैं।



इसके बीज और बीजों का तेल औषधि के रूप में उपयोगी है। अलसी रस में मधुर, पाक में कटु (चरपरी), पित्तनाशक, वीर्यनाशक, वात एवं कफ वर्घक व खांसी मिटाने वाली है। इसके बीज चिकनाई व मृदुता उत्पादक, बलवर्घक, शूल शामक और मूत्रल हैं। इसका तेल विरेचक (दस्तावर) और व्रण पूरक होता है।

अलसी की पुल्टिस का प्रयोग गले एवं छाती के दर्द, सूजन तथा निमोनिया और पसलियों के दर्द में लगाकर किया जाता है। इसके साथ यह चोट, मोच, जोड़ों की सूजन, शरीर में कहीं गांठ या फोड़ा उठने पर लगाने से शीघ्र लाभ पहुंचाती है। एंटी फ्लोजेस्टिन नामक इसका प्लास्टर डॉक्टर भी उपयोग में लेते हैं। चरक संहिता में इसे जीवाणु नाशक माना गया है। यह श्वास नलियों और फेफड़ों में जमे कफ को निकाल कर दमा और खांसी में राहत देती है।

इसकी बड़ी मात्रा विरेचक तथा छोटी मात्रा गुर्दो को उत्तेजना प्रदान कर मूत्र निष्कासक है। यह पथरी, मूत्र शर्करा और कष्ट से मूत्र आने पर गुणकारी है। अलसी के तेल का धुआं सूंघने से नाक में जमा कफ निकल आता है और पुराने जुकाम में लाभ होता है। यह धुआं हिस्टीरिया रोग में भी गुण दर्शाता है। अलसी के काढ़े से एनिमा देकर मलाशय की शुद्धि की जाती है। उदर रोगों में इसका तेल पिलाया जाता हैं।



सेक्स ही हर समस्या का अंत करें




अलसी या फ्लैक्सीड की मदद से सेक्स से जुड़ी हर समस्याओं का समाधान निकाला जा सकता है। महिलाओं व पुरुषों में सेक्सुअली सक्षम न हो पाने का एक प्रमुख कारण है पेल्विस की रक्त वाहिनियों में रक्त का सही तरीके से प्रवाह न होना। फ्लैक्सीड के लगातार प्रयोग से रक्त वाहिनियां खुल जाती हैं। नब्बे के दशक में फ्लैक्सीड को एक अच्छा एफरोडाइसियेक्स माना जाता था। एफरोडाइसियेक्स उत्तेजित करने वाले प्राकृतिक पदार्थ होते हैं


महिलाओं में जगाती है सेक्स की इच्छा


अलसी के नियमित सेवन से स्त्रियों के स्तनों में वृद्धि होती है। गर्भवती स्त्री के स्तनों में दूध बढ़ाने के लिए भी इसे खाने की सलाह दी जाती है। साथ ही अलसी के बीज महिलाओं में सेक्स के प्रति दिलचस्प‍ी जाग्रत करते हैं। 


यौनांगों में जलन और योनि संकुचन जैसी बीमारियों के लिए तो इसे अचूक औषधि माना गया है। इसके अलावा मासिक धर्म से संबंधित परेशानियों में भी इसके द्वारा इलाज किया जाता है। अलसी के लगातार सेवन से चेहरे पर भी कांति आती है। 

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